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Thursday, April 28, 2016

पानी की बूँदें

पानी की बूँदे भी,
मशहूर हो गई ।

कल तक जो यूँही,
बहती थी बेमतलब,
महत्वहीन सी यहाँ वहाँ,
फेंकी थी जाती,
समझते थे सब जिसके,
मामूली सी ही बूँदें,
आज वो पहुँच से,
दूर हो गई ।
पानी की बूँदें भी,
मशहूर हो गई ।

महत्व नहीं थे देते,
कोई भी इसको,
न जाने कहाँ कहाँ,
बेकार बह गई ।
लोटे भर की जगह,
बाल्टी भर बहाया,
आज वही सबके लिए,
हूर हो गई ।
पानी की बूँदें भी,
मशहूर हो गई ।

रौद्र रुप दिखाया,
जब सूर्यदेव ने अपना,
नदियाँ, नाले, तालाब,
सूखते चले गए,
भूगर्भ जल भी होने लगा,
पहुँच से बाहर ।
तब यही बूँदें,
नूर हो गई ।
पानी की बूँदें भी,
मशहूर हो गई ।

कीमत क्या है इसकी,
पूछ लो जरा उससे,
एक ग्लास के लिए,
मीलों जो हैं जाते,
मिलता हमे आसानी से,
छूटकर हम लुटाते ।
अब तो हर जगहें,
लातूर हो गई ।
पानी की बूँदें भी,
मशहूर हो गई ।

कहने लगी ये बूँदें,
संरक्षण करो मेरा,
वर्ना क्या दोगे,
पीढ़ियों को अपने,
नसीब से बाहर,
हो जाऊंगी उनके ।
संभल जाओ अब भी,
कहकर फुर्र हो गई ।
पानी की बूँदें भी,
मशहूर हो गई ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Thursday, March 24, 2016

जोगिड़ा सारा रा रा

जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

कांग्रेस को पड़ गई, मोदी की यूँ मार,
कांग्रेस को पड़ गई, मोदी की यूँ मार,
राहुल खुद को भूल गए, याद कन्हैया कुमार ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

दिल्ली वालों ने देखी, टेढ़ी मेढ़ी चाल,
दिल्ली वालों ने देखी, टेढ़ी मेढ़ी चाल,
बड़ा नौटंकीबाज है,  नाम है केजरीवाल ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

शिक्षक को वेतन नहीं, सूना है त्योहार,
शिक्षक को वेतन नहीं, सूना है त्योहार,
ओवन गिफ्ट में बांट रही, चोर नीतिश सरकार ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

माया हाथी पर चढ़ी, लड़ने को तैयार,
माया हाथी पर चढ़ी, लड़ने को तैयार,
नाव बीच में अटक पड़ी, मिले नहीं पतवार ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

एक समस्या और यहाँ, आकर हो गया खड़ा,
एक समस्या और यहाँ, आकर हो गया खड़ा,
छोटका बेटा लालू का, है बड़का से बड़ा ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

कटप्पा ने बाहुबलि को, मार दिया जनाब,
कटप्पा ने बाहुबलि को, मार दिया जनाब,
क्यों मारा ये आज तक, मिला नहीं जवाब ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

थूर देखे एक में, सिंह भगत का नूर,
थूर देखे एक में, सिंह भगत का नूर,
भौजी जी की मौत की पहले, बात बको हुजूर ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

मोदी ने बस दो साल में, दिया है सबको हिला,
मोदी ने बस दो साल में, दिया है सबको हिला,
देशद्रोही कीड़े निकले, बिल से बिल बिला ।

बोलो हय्या हय्या हय हय ।
जोगिड़ा सारा रा रा, जोगिड़ा सारा रा रा ।
वाह भाई वाह वाह, वाह खिलाड़ी वाह वाह ।

होली हे !!!!

-प्रदीप कुमार साहनी

गाँव की होली

असली होली गाँव की होली,
अपनी माटी अपनी बोली,
एक अलग ही जोश जहाँ पर,
खुशियाँ ही हर एक की झोली ।

कई दिनों से आस है रहता,
हर शाम मजलिस है सजता,
मंदिर और चौराहों पर नित,
ढोलक और करताल है बजता ।

लोक लुभावन लोक गान में,
नई ताजगी इस जान में,
जोगिड़ा सा रा रा रा के,
मन झूमते मधुर तान में ।

दहन होलिका की तैयारी,
मेला सा माहौल बलिहारी,
घर घर से चंदा लकड़ी का,
रतजग्गा भूल दुनियादारी ।

घर घर बनता पकवान यहाँ,
मालपुआ, गुजिया पान यहाँ,
क्या निर्धन क्या पैसे वाले,
रख एक दूजे का मान यहाँ ।

फिर रंगों की खेल अनोखा,
गिला नहीं, शिकवा न धोखा,
हर दुख दुविधा दूर वही क्षण,
रंग लागे हर एक को चोखा ।

पूरे गाँवों में घुम घुम,
बच्चे बूढ़े हैं मचाते धूम,
क्या भैया क्या भौजी, दादी,
सबको होली के रंग ले चुम ।

ढोलक, मृदंग, मंजीर बजा,
गाकर नाचे मस्ती है मजा,
जा द्वार द्वार खेले होली,
मांगे होली हर घर घर जा ।

हर एक रंगे इस होली में,
कोई घर में नचे कोई टोली में,
हर भेद भाव को भूल भला,
क्यों न गायें निज बोली में ।

जो गाँव की होली में है बात,
हैं कहाँ कहीं ऐसी सौगात,
दो चार मित्र, मेहमान बुला,
बीते होली के दिवस व रात ।

गाँव की होली असली होली,
अजब ठहाके गजब ठिठोली,
मस्ती में झूमे हर मन यूँ,
असली होली गाँव की होली ।

-प्रदीप कुमार साहनी

Wednesday, March 23, 2016

शहीद दिवस पर नमन

भारत माता के लाल थे वे,
आजादी की थी चाह बड़ी,
भारत माता के शान में बस,
चल निकले मुश्किल राह बड़ी ।

स्वाधीनता के दीवाने थे,
गौरों का दम जो निकाला था,
नस नस में थी आग दौड़ती,
खुद को आँधी में पाला था ।

इंकलाब की आग देश में,
खुद जलकर भी लगाया था,
मूँद कर आँखें सोये थे जो,
फोड़ कर बम यूँ जगाया था ।

सच्चे सपूत थे माता के,
अपना सुख दुःख सब भूल गए,
माता की बेड़ी तोड़ने को,
हँसते फांसी में झूल गए ।

वे बड़े अमर बलिदानी थे,
फंदे को जिसने चूमा था,
मेरा रंग दे बसंती चोला पर,
मरते मरते भी झूमा था ।

आदर्श बने लाखों युवा के,
नाम है जब तक है गगन,
सिंह भगत, सुखदेव, गुरु,
है आपको शत-शत नमन ।

भगतसिंह,सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर शत-शत नमन । 

-प्रदीप कुमार साहनी

Tuesday, March 22, 2016

चलो नया एक रंग लगाएँ

लाल गुलाबी नीले पीले,
रंगों से तो खेल चुके हैं,
इस होली नव पुष्प खिलाएँ,
चलो नया एक रंग लगाएँ ।

मानवता की छाप हो जिसमे,
स्नेह सरस से सना हो जो,
ऐसी होली खूब मनाएँ,
चलो नया एक रंग लगाएँ ।

जात-पात की हर दीवारें,
और न दिखे हम सब में,
रंगों से रंगभेद मिटाएँ,
चलो नया एक रंग लगाएँ ।

हो राष्ट्रप्रेम हर दिल में बस,
भारत माँ की जयकार हो,
राष्ट्रवाद हर ओर फैलाएँ,
चलो नया एक रंग लगाएँ ।

इस समाज की कुव्यवस्था पर,
चोट करे हम हरदम ही,
नव पीढ़ी को सही सिखाएँ,
चलो नया एक रंग लगाएँ ।

सही को सही कह पाये हम,
गलत हो जो धिक्कार करें,
मन में नव रंगोली सजाएँ,
चलो नया एक रंग लगाएँ ।

-प्रदीप कुमार साहनी

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